कल महिला दिवस था । इक्कीसवी सदी की नारी का जिक्र आते ही हमारे मन में एक सुपर पावर वुमेन की तस्वीर उभरती है। जो हर क्षेत्र में सफलता का परचम लहरा रही है। यह सही है स्त्री ने घर की चहारदीवारी से बाहर निकल कर अनंत आकाश तक का सफर तय कर लिया है। किरण बेदी, कल्पना चावला, सानिया मिर्जा से प्रतिभा पाटिल तक के उदाहरण समाज को देखने को मिले, पर क्या ये काफी हैं? महिलाएं समाज का आधा हिस्सा हैं और उनके लिए केवल एक दिन ? बाकी के दिन किसके हैं। महिला दिवस पर एक दिन महिलाओं का है, बोलकर कई सारे आयोजन कर, शासन- प्रशासन और सामाजिक कार्यकर्ता की कुर्सी पर बैठे लोग अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते हैं। उनकी नजर में महिलाओं के पास भी पुरुषों के समान अधिकार तथा दायित्व हैं। आज महिलाओं के लिए समाज में मान-सम्मान के साथ ही कानून और सुरक्षा के आयाम बढ़े हैं।
आज की नारी के लिए बस इतना ही-
कर पदयात अब मिथ्या के मस्तक पर
सत्यांवेश के पथ पर निकलो नारी
तुम बहुत दिनों तक बनी रही दीप कुटिया का
अब बनो क्रांति के ज्वाला की चिंगारी।
कैसे हुई महिला दिवस की शुरूआत
आज से एक सौ एक साल पहले 1908 में न्यूयॉर्क में महिलाओं ने अपने हक के लिए आवाज उठाई थी। वोट डालने के अधिकार, समान वेतन और काम के घण्टे कम करने के लिए 15000 महिलाओं ने न्यूयॉर्क की सड़कों पर आन्दोलन किया था। इस लड़ाई में बहुत सी महिलाए· आहत हुई थीं। बाद में पुरुष वर्चस्व को विवश होकर महिलाओं को उनका अधिकार देना पड़ा।तीन साल के बाद 1911 में आठ मार्च का यह दिन जर्मनी में महिला दिवस के रूप में मनाया गया। बाद में इस दिन को महिला दिवस के रूप में मान्यता मिल गई। पूरे संसार में 8 मार्च का दिन महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में 1952 से इसे मनाया जा रहा है।
पहल जरुरी
पिछले दशकों में स्त्रियों का उत्पीड़न रोकने और उन्हें उनके हक दिलाने के बारे में बड़ी संख्या में कानून पारित हुए हैं। अगर इतने कानूनों का सचमुच पालन होता तो भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव और अत्याचार अब का खत्म हो जाना था। लेकिन पुरूष प्रधान मानसिकता के चलते यह संभव नहीं हो सका है। हमे कोशिश करनी चाहिए की इस दिशा में कुछ हो।
पहल जरुरी
पिछले दशकों में स्त्रियों का उत्पीड़न रोकने और उन्हें उनके हक दिलाने के बारे में बड़ी संख्या में कानून पारित हुए हैं। अगर इतने कानूनों का सचमुच पालन होता तो भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव और अत्याचार अब का खत्म हो जाना था। लेकिन पुरूष प्रधान मानसिकता के चलते यह संभव नहीं हो सका है। हमे कोशिश करनी चाहिए की इस दिशा में कुछ हो।
8 टिप्पणियां:
महिला दिवस से इतर भी स्त्री होती है आखिर वो हमें दिखाई क्यों नहीं देती?
रंगों के त्योहार होली पर आपको एवं आपके समस्त परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ
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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
अच्छी पोस्ट,
स्त्रीयों को उनका हक सचमुच मिलना चाहिए
आपको और आपके परिवार को होली मुबारक हो
"कर पद यात्रा अब मिथ्या के मस्तक पर
सत्यांवेश के पथ पर निकलो नारी..
तुम बहुत दिनों तक बनी रही दीप कुटिया का..
अब बनो क्रांति के ज्वाला की चिंगारी.."
महिलाओ के बारे आप की चिंता जायज़ है...हमें इस ओर जरूर ध्यान देना चाहिए..
बधाई..
Mahila Diwas Ke Baare M Jaankari Thi per Itni jyada Nahi...Badhayi
ये पुरुष प्रधान ,पुरुष प्रधान शब्द बार बार प्रयोग कर महिलाओं के मन में क्यों ईर्षा भावः भरा जा रहा है -रहा होगा कभी पुरुष प्रधान समाज /कुछ अपवादों को छोड़ कर ,आज कौन कह सकता है कि पुरुष प्रधान समाज है
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'पुरुष प्रधान मानसिकता के चलते यह संभव नहीं हो सका है। हमे कोशिश करनी चाहिए की इस दिशा में कुछ हो।'
-कम से कम शहरों में इस दिशा में पहल हो चुकी है. आज एक बड़ी संख्या उन माँ बाप की है जो लड़का - लड़की में भेद नहीं करते. पुरुषों की एक बड़ी संख्या है जो घर के कामों में पत्नी का पूरा सहयोग करते है.
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