प्रेम बस नाम ही है
किसी सुखद एहसास का
उसका एहसास ही
भूला देता है सारे सुख
बचता है फिर
सिर्फ और सिर्फ डर
डर, प्रेम के उजागर हो जाने का,
डर ,साथ साथ देखे जाने का,
डर, साथ छूट जाने का,
डर, प्रेम में छले जाने का,
डर, प्रेम का ‘शादी के द्वार आने/ न आने का
डर,प्रेम का समय के घोड़े की पीठ से फिसल जाने का
डर, प्रेम की जगह किसी और आकशZण में बंधे रह जाने का
डर- डर- डर और डर