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कहते हैं वक्त हर जख्म भर देता है। गहरे से गहरा ही क्यो न हो। पर मैं इस बात से इत्तेफाक नही रखती। कुछ जख्म तो ऐसे होते हैं जिसकी टीस ता -उम्र ही नही मरने के बाद भी बरक़रार रहती है। ऐसे गहरे जख्म को भरने की ताकत वक्त के पास भी नही होती। ऊपर - ऊपर दिखता जरुर है की जख्म भर गया है पर दरसल होता यह है कि उस जख्म पर वक्त का मरहम ही लगा होता है। मरहम के नीचे छिपा होता है गहरा सा जख्म। इसलिए जैसे ही कोई जख्म कुदेरता है या सिर्फ़ उन जख्मो को छूता ही है तो टीस बढ़ जाती है, लहू निकलने लगता है जख्म फ़िर से कई कई दिनों के लिए फ़िर से हरा हो जाता है। उसके बाद उन जख्मो पर वक्त के साथ सहानुभूति , भावनाओ और अनुभव का लेप लगाकर उनको उस समय तक ढँक दिया जाता है जब तक कि कोई अन्य कुदेर न दे । ऐसा ही जख्म होता है विश्वासघात का । न भरने वाले जख्मो में इसकी भी गिनती होती है। अक्सर विश्वासघात वे ही करते हैं जिनपर आपका अगाध विश्वाश हो। आपने आस- पास अपनों के रूप में रहने वाले विश्वासघातियो को पहचानना बहुत मुश्किल होता है । पर एक बार इनको पहचान लिया जाए तो आपको बहुत सारी असुविधाओ, मानसिक तनाव व कार्यो के अवरोध से बचा जा सकेगा। यही वो शास्त्र है जिसे प्रभाव से बचना बहुत मुश्किल।
आज साल का अन्तिम दिन है । मैं चाहती हूँ आने वाले नए साल में सभी ब्लागर साथियो की विश्वासघात से रक्षा हो।