सोमवार, 16 अप्रैल 2012

आज का मानव



शब्दहीन , संज्ञाहीन

और
संवेदनहीन
किसी को मरते देख
अपरिवर्तित रहती भावनाएं
किसी को दुखी देख
उर से खुशियाँ बरसती हैं
कोई रोये तो
अधरों पर मुस्कान तैरती हैं
कोई मदद को पुकारे
तो कान दे नही पाते
कहीं थोडी प्रशंसा मिली
तो पाँव ज़मीन छोड़ देते हैं
कोई चार पैसे दे दे
बस उसके तलुए सहलाते हैं
कभी कर्तव्य की बात हो
उन्हें तारे दिख जाते हैं
रिश्ते नाते के मामले में
बस रुपयों से मेल बढाते हैं
भगनी -दुहिता माता
सारे सम्बन्ध एक धागे में
पिरो दिए जाते हैं
नारी को बस नारी बनाते हैं
इस मानव का कभी
पुराने मानव से
मेल कराते हैं


तो छत्तीस का आकडा पातें हैं

2 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

यथार्थपरक रचना

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Khote huve moolyon mein aaj manav manav kaha rah Gaya hai... Arthpoorn rachna...