शनिवार, 28 अप्रैल 2012

इज्ज्त किसकी जाती है?


ट्रेनिंग सेंटर में अफसरों ने दागदार की महिला सिपाहियों की इज्जरत, यह एक खबर का शीर्षक है, इन दिनों किसी अखबार में पढी। आये दिन हम सभी का पाला ऐसी खबरों से पडता ही रहता है। महिला सिपाही ईमानदारी से अपना काम कर रही है। कुछ अफसर उनके साथ बदतमीजी करते हैं, वे परेशान हैं, कोईं उनकी मदद नहीं कर पा रहा है( बात नौकरी की है, हर कदम वे सोच समझ कर उठाना चाह रही है। उनकी पीडा अनकही है। जो हाल इस देश के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं की है, किसी से छुपी नहीं है। उनमें से कइयों ने घर में तमाम लडाइयां लडी होंगी, कोई घर में अपने छोटे बच्चों को छोड आयी होंगी, किसी ने माता पिता या अपने पति को आश्वासन दिया होगा कि वो पूरी ईमानदारी से अपना काम करेगी और परिवार का नाम रोशन ही करेगी न कि कोई गलत काम करेगी और ऐसी महिलाओं के साथ दुरव्यवहार, वह भी शारीरिक स्तर पर। खबरे मीडिया में आ रही हैं और मीडिया के माध्यम से हम तक। मीडिया इन खबरों को भी अपना एक उत्पाद मानती है, लज्जतदार तरीके से पेश करती है। लोग इसे मनोरंजन समझ कर चटखारे लेकर पढते हैं। हम लिखने, पढने वाले उन महिलाओं की कौन सी मदद करते हैं? इनसे भी अहम बात है कि कसूरवार कौन है? बेईज्जती करने वाले या जिनके साथ घटनाएं हो रही हैं वे। महिलाओं के संदर्भ में हम यह क्यों लिखते हैं कि उनकी इज्जत चली गई। कुकर्म करने वालों की इज्जत क्यों नहीं जाती? दामन उनका क्यों दागदार नहीं होता ? एक तरफ समाज के कुछ सिरफिरे उनके तन मन को चोट पहुंचाते हैं, समाज का दूसरा तबका उनकी मदद तो नहीं करता, उन्हें दोषी करार देकर उनकी पीड़ा को बढ़ता जरुर है , वह भी उनकी इज्जत को आधार बनाकर। पुरुष और स्त्री की इज्जत इतनी अलग अलग क्यों है ? हमारे देखने, सुनने और विहेव करने का यह तरीका सिरफिरों का हौसला ही बढ़ाते हैं, हमारे लिखने का यह तरीका ] उनको बताता है कि अरे अपना क्या, हमरी तो इज्जत बढ़ेगी, जाएगी उन महिलाओं की। इज्जत की खातिर महिलाएं चुप रहेंगी ही, कहीं शिकायत नहीं होगी और हम पहले की तरह ही बाइज्ज्त रहेगे किसी न किसी िशकार की तलाश में। क्या वक्त नहीं आ गया है कि ऐसी घटनाओं को देखने सुनने के तरीके में और इन घटनाओं में शामिल लोग और पीडित के साथ हमारे व्यवहार में परिवर्तन हो। सब कुछ जान समझ कर कब तक हम निर्दोष को ही दोषी ठहराते रहेंगे?

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

रिश्ते

1
एक हम मिले
दूसरे दिन करीब आ गए
तीसरे दिन और और
और आ गए करीब
चौथे दिन समां गए एक दूसरे में
और फिर आज ....
कहाँ हो तुम
कहाँ हूँ मैं
दोनों को ख़बर नही

रिश्तों की भीड़ में
अकेला खड़ा में
ढूंढ़ रहा उसे
जो सच में
रिश्ता हो


रिश्तों की दुनिया से
चुराया मैंने
एक प्यारा सा रिश्ता
फूलने - फलने लगा यह
मेरे भीतर और
साथ - साथ
फुला -फला मैं भी
चढ़ता गया
उत्कर्ष की सीढियां
पर , जब ऊपर पहुँचा
जाने कब से
मेरे रिश्ते की बेल
सूखी मुरझाई
पैरों तले कुचली थी

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

आज का मानव



शब्दहीन , संज्ञाहीन

और
संवेदनहीन
किसी को मरते देख
अपरिवर्तित रहती भावनाएं
किसी को दुखी देख
उर से खुशियाँ बरसती हैं
कोई रोये तो
अधरों पर मुस्कान तैरती हैं
कोई मदद को पुकारे
तो कान दे नही पाते
कहीं थोडी प्रशंसा मिली
तो पाँव ज़मीन छोड़ देते हैं
कोई चार पैसे दे दे
बस उसके तलुए सहलाते हैं
कभी कर्तव्य की बात हो
उन्हें तारे दिख जाते हैं
रिश्ते नाते के मामले में
बस रुपयों से मेल बढाते हैं
भगनी -दुहिता माता
सारे सम्बन्ध एक धागे में
पिरो दिए जाते हैं
नारी को बस नारी बनाते हैं
इस मानव का कभी
पुराने मानव से
मेल कराते हैं


तो छत्तीस का आकडा पातें हैं

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

चिड़िया





इन दिनों पहले वाली बात नहीं रही. कुछ साल पहले तक गर्मियों की सुबह छत चिड़ियों की चहचआहट से गुलजार रहती थी . अब कितनी भी सुबह उठ जाओ चिड़ियाँ दिखती नहीं. सभी लोगों का तो मालूम नहीं पर मेरे जैसे उनकी आवाज के आदि लोगों के लिए यह एक दुखद घटना है, घर जाने पर मेरी सुबह उनकी आवाज से ही हुआ करती थी . चिड़ियाँ जाने कहाँ गम हुई की अब घर जाकर भी निराशा हाथ आती है.
पिछले दिनों चिड़ियाँ की याद में कविता लिखी थी
चिड़िया
उस दिन दिखी थी चिड़िया
थकी- हारी
बेबस क्लांत सी
मुड़- मुड़ कर
जाने किसे देख रही थी
या फिर, नजरें दौड़ा- दौड़ाकर
कुछ खोज रही थी
मैंने सोचा,
ये तो वही चिड़िया है
जो बैठती है मुंडेर पर
चुगती है आंगन में
खेलती है छत पर
और मैं
घर में, बाहर
मुडेर पर, छत पर
जा - जाकर देख आई
दिखी कहीं भी नहीं वह
तब याद आया
वो तो दाना चुगती है
मुठ्ठी में लेकर दाने बिखेरे
आंगन से लेकर छत तक
पर आज तक बिखरे हैं दानें
चिड़िया का नामोनिशां नहीं
‘शायद अब दिखती नहीं चिड़िया
आंगन में, छत पर
या मुड़ेर पर
चिड़िया हो गई हैं किताबों
और तस्वीरों में कैद
पर मैं भी हूं जिद पर
रोज बिखेरती हूं दाना
रोज करती हूं इंतजार
आएगी, मेरी चिडिया रानी
कभी तो आएगी
स्नेह सिंचित दाने
आकर खायेगी।

रविवार, 22 जनवरी 2012

जंगल के जानवर







देखने को जंगली जानवर
किसने जू बनवाया
आओ मेरे साथ
हर मोड़ पर
करा सकती हूँ
जानवर से साक्षात्कार
सांप हो या नेवला
हिरन हो या शेर
भेड़े और भेड़िया
मनुष्य के अंदर
मिलती है हर किस्म
और तो और
जरुरत के हिसाब से
शेर खता है तिनका
सांप नेवले के
लगता है गल
जंगल बस्ता है शहर में
जाने जंगल में अब कौन है ?

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

चलो नया वैलेंटाइन मनाएं




इस बार नक्षत्र युवाओं पर काफी मेहरबान हैं। वैलेंटाइनवीक के साथ ही बसन्त पंचमी और अन्य त्योहार आऐं हैं। वेलेंटाइन डे को लेकर युवाओं का उत्साह चरम पर है। प्रेम के पर्व की उमंग को इस साल हिंदू धार्मिक पंचांग का भी पूरा समर्थन मिल रहा है। सात फरवरी से शुरू हो रहे वेलेंटाइन वीक के हर दिन कोई न कोई पारंपरिक पर्व है। कई बंदिशों के कारण घर से निकलने में कतराने वाले प्रेमी जोड़ों को इस बहाने मिलने का खूब अवसर है। वेलेंटाइन वीक का पहला दिन रोड डे के रूप में मनाया जाता है। जबकि उसी दिन गणेश चतुर्थी है। आठ फरवरी को प्रपोज डे के दिन ही बसंतपंचमी है, जिसे मदनोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। वहीं 13 फरवरी को किस डे के मौके पर गुप्त नवरात्र की विजयादशमी है।

कौन सा दिवस कब
पाश्चात्य पर्व भारतीय पर्व
7 फरवरी -रोज डे- गणेश चतुर्थी
8 फरवरी -प्रपोज डे बसन्त -पंचमी, मदनोत्सव
9 फरवरी -चॉकलेट डे- मन्दार षष्टी
10 फरवरी- टेडी डे -रथ सप्तमी
11 फरवरी प्रामिस डे भीष्म अष्टमी
12 फरवरी -हग डे - महानन्दा नवमी
13फरवरी -çकस डे –विजय दशमी
14फरवरी-वेलेंटाइन डे -जया एकादशी

शनिवार, 27 नवंबर 2010

डर और प्रेम








प्रेम बस नाम ही है
किसी सुखद एहसास का
उसका एहसास ही
भूला देता है सारे सुख
बचता है फिर
सिर्फ और सिर्फ डर
डर, प्रेम के उजागर हो जाने का,
डर ,साथ साथ देखे जाने का,
डर, साथ छूट जाने का,
डर, प्रेम में छले जाने का,
डर, प्रेम का ‘शादी के द्वार आने/ न आने का
डर,प्रेम का समय के घोड़े की पीठ से फिसल जाने का
डर, प्रेम की जगह किसी और आकशZण में बंधे रह जाने का
डर- डर- डर और डर