प्रेम बस नाम ही है
किसी सुखद एहसास का
उसका एहसास ही
भूला देता है सारे सुख
बचता है फिर
सिर्फ और सिर्फ डर
डर, प्रेम के उजागर हो जाने का,
डर ,साथ साथ देखे जाने का,
डर, साथ छूट जाने का,
डर, प्रेम में छले जाने का,
डर, प्रेम का ‘शादी के द्वार आने/ न आने का
डर,प्रेम का समय के घोड़े की पीठ से फिसल जाने का
डर, प्रेम की जगह किसी और आकशZण में बंधे रह जाने का
डर- डर- डर और डर
6 टिप्पणियां:
बस इसीलिए तो गब्बर सिहं कह गया है कि जो डर गया वो मर गया। हा हा।
बहुत ख़ूबसूरत अहसास समेटे हुए है आपकी यह कविता।
शैली खत्री जी
बहुत ख़ूबसूरत है आपका ब्लॉग…
और रचनाएं भी
प्रेम के नाम पर इतने डर की क्या आवश्यकता है ?
कहते हैं न प्यार किया तो डरना क्या …? … लेकिन सच पूछा जाए तो डर ज़रूरी भी है ।
बहरहाल अच्छी कविता है ।
और भी श्रेष्ठ सृजन के लिए शुभकामनाएं हैं ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Dar ke aage Jeet hai
मनमोहक ब्लॉग और विचारपरक रचना - लोग कहते हैं कि "प्यार किया तो डरना क्या" और डर के आगे जीत है लेकिन डर स्वाभाविक है - नव वर्ष २०११ कि मंगल कामना
उसका एहसास ही
भूला देता है सारे सुख
बचता है फिर
सिर्फ और सिर्फ डर
ये डर थोडा जरूरी भी है ....
बहुत सुन्दर रचना
बधाई
आभार
ati sunadr bete
sneh
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