शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

स्वच्छता अभियानः अभी दूर है मंजिल


अभी पूरा देश स्वच्छ भारत अभियान में जुटा है।  सब मानने लगे हैं कि इस अभियान से पूरे देश की सफाई हो जाएगी। भारत में स्वच्छता लहलहा उठेगी। एक बड़ा सवाल है कि क्या सचमुच ऐसा हो सकेगा, और इस ख्वाब को पूरा करने के लिए किन किन हथियारों की आवष्यकता होगी। जिस रास्ते पर यह अभियान जा रहा है वह सफलता की राह है भी या नहीं।
यह दुखद है कि हड़प्पा की सुनहली संस्कृति और वेदों के पावन मंत्रों के नीचे फला फूला भारतीय जनमानस आज नागरिक कर्तव्यों सेे केवल च्युत है बल्कि लोग इसे जानते समझते भी नहीं हंै। सफाई का मलतब लोगों के लिए अपने घर को साफ करने से ही है। सार्वजनिक स्थल पर गंदगी फैलाना लोग अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। आए दिन सड़कों के किनारे फैला कचरा, बजबजाती नालिया, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, सरकारी कार्यालय आदि सभी जगह गंदगी का अंबार और यत्र- तत्र कचरा फैला मिलेगा। सार्वजनिक स्थलों को साफ रखना और दैनिक जीवन में स्वछता की आदत यहां लोगों ने सीखी ही नहीं है। डस्टबीन का उपयोग सीखना भी अभी बाकी ही है। आम लोगांे के लिए विशेषकर पुरुषों के लिए पूरा, हर शहर की हर गली, हर सड़क शौचालय है। सार्वजनिक ट्वायलेट बने हो तब भी वे सड़क के किनारे ही ट्वायलेट करना पसंद करते हैं। यह उनकी आदतों में शुमार है। ऐसे में बिना लोगों की आदतंे बदले स्वच्छता अभियान कैसे सफल होगा?
दूसरा अहम मुद्दा है शौचालय का। गंदगी सिर्फ सड़कों पर फेके गए कचरे से ही नहीं आती। यत्र त़त्र बने खुले शौचालयों से भी फैलती है। देश में गांव और शहर की कई बस्तीयों में लोगों के पास शौचालय नहीं है। एनजीओ के माध्यम से शौचालय बनवाने के काम की दशा किसी से छुपी नहीं है। 40 प्रतिशत से अधिक सरकारी स्कूलों में शौचालय नहीं है। सरकारी कार्यालयों में शौचालय की स्थिति अच्छी नहीं होती। इनके बिना स्वच्छता का सपना कैसे पूरा होगा।

रोड़े सिर्फ नागरिकों की ओर से ही हैं ऐसी बात नहीं है। सरकारी की तैयारी भी कहां है। लोग कचरा फेंकना सीख तो जाएंगे पर नगरपालिका, सरपंच और मुख्यिा के पास यदि कचरा उठवाने और उसके प्रबंधन की कोई व्यवस्था ही नहीं हो तो कचरा तो ऐसे ही बिखरा रह जाएगा ना। इनके पास सबसे पहले तो कचरा उठवाने के संसाधन नहीं होते। उसके बाद कचरा डंपिंग के लिए भी सही जगह नहीं होती। आपको देश के बड़े बड़े शहरों में शहर के बाहर या किसी कोने में कचरा यूं ही खुले में डंप किया मिल जाएगा। वे खुद ही सुख सुख के टीले बनते रहते हैं और हवा से फैलते रहते हैं। कचरा बिनने वाले लोग ही इनका कुछ भला कर देते हैं। यही हाल मेडिकल वेस्ट का भी है। वेस्ट मैनेमेंट के बारे में सोचने में अभी हम बहुत पीछे हैं।  शहरों में ड्रेनेज सिस्टम संयंत्रों के माध्यम से बेस्ट मैनेजमेंट की संपूर्ण नीति बनाए और लागू किए बिना स्वच्छा अभियान खोखला है। हां, यह अच्छा कि देर से ही सही स्वच्छता के लिए ओर लोगों का ध्यान जाना शुरू तो हुआ है। सरकार ने सपना देखा है, अब हर आंखों में यह ख्वाब जगमगाना चाहिए और इसे पूरा करने की दिशा में ठोस कदम बढ़ाते रहना चाहिए। अब यदि प्रशासन और जनता दोनों ने कमर कस ली और अपने अपने स्तर वाले कमियां पूरी कर ली स्वच्छता से देश का आंगन जगमगाता रहेगा।