शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

नर्मदे हर



आज है नर्मदा जयंती



हजारों साल के तप से पाया आज सा सौन्दर्य
जबलपुर में बिखेरा मां ने अतुलनीय सौन्दर्य

`अलक्ष लक्ष किन्नरा नरासुरादि पूजित
सुलक्ष नीरतीर धीर पक्षिलक्ष कूजितं।
वशिष्ट शिष्ठ पिप्लाद कर्मामादिशर्मदे,
त्वदीय पाद पंकज नमामि देवि नर्मदे।।
नर्मदा स्त्रोत की ये पंक्तियां जबलपुर में नर्मदा नदी के रूप-स्वरूप और महिमा के अनुरूप हैं। उद्गम से लेकर सागर समागम तक नर्मदा का जो तेज, जो सौन्दर्य, उसकी जो अठखेलियां और उसकी जो अदाएं, परिलक्षित होती हैं वो जबलपुर के अलावा अन्यत्र दुलoभ हैं। प्रकृति ने तो इस क्षेत्र में नर्मदा को अतुलित सौन्दर्य प्रदान किया ही, स्वयं नर्मदा ने भी अपने हठ और तप से अपनी श्रीवृद्धि इसी क्षेत्र में की है।
हां, यहां नर्मदा ने हठ और तप से रास्ता भी बदला है। पहले कभी वह धुआंधार से उत्तर की ओर मुड़कर सपाट चौड़े मैदान की ओर बहती थी। सामने का सौन्दर्य नर्मदा को भी आकषिoत करता था वह बरसात में जोर लगाती चट्टानों को काटती और हजारों वर्षों के तप के बाद उसने आज सा सौन्दर्य पा ही लिया।
ये तो भेड़ाघाट क्षेत्र की बात हुई। इसके अलावा भी ग्वारीघाट, तिलवाराघाट, लम्हेटाघाट, गोपालपुर, घुघुआ फॉल और पंचवटीघाट जैसे सौन्दर्य से परिपूर्ण स्थल नर्मदा ने इस प्रदेश को दिए हैं। इन क्षेत्रों में भी महत्व और सौन्दर्य की विपुल राशि है, पर भेड़ाघाट के सौन्दर्य के आगे सब बौने हो जाते हैं।
जबलपुर में नर्मदा की आस्था का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र है ग्वारीघाट। यहां रोज शाम को दीपदान करने वालों का रेला देखते ही बनता है। बीच जल में देवी नर्मदा का मन्दिर श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण है। नाव से वहां तक पहंुचकर पूजा करना रोमांचक अनुभव है। इसके अलावा घाट पर अनेक मन्दिर हैं, जिनमें कुछ प्राचीन हैं तो कुछ हाल के वर्षों में बने हैं। घाट से दूर जाने पर मां काली का प्राचीन और सिद्ध मन्दिर है। विभिन्न सन्तों के आश्रम भी आस-पास होने के कारण यहां श्रद्धालुओं का तान्ता लगा रहता है। यूं यहां दीपदान की परंपरा अत्यन्त प्राचीन है, पर पहले यहां लोगों का आना कम होता था या विशेष अवसरों पर ही यहां भीड़ जुटती थी। धीरे-धीरे दीपदान की ओर लोगों की आस्था बढ़ी और दस-पन्द्रह वर्षों में श्रद्धालुओं की संख्या कई गुना बढ़ गई। कहते हैं नर्मदा के दर्शन से ही सारे पाप नष्ट होते हैं। इसलिए यहां दर्शनाथिoयों का भी तान्ता लगता है। विशेष अवसरों (संक्रान्ति, नर्मदा जयन्ती आदि) पर यहां मेला लगता है।
नर्मदा का दूसरा महत्वपूर्णघाट है तिलवाराघाट। यहां लगने वाला मकर संक्रान्ति का मेला काफी प्रसिद्ध है। इस मेले का इतिहास भी काफी प्राचीन है। कुछ परिवर्तन के बाद भी यह मेला नर्मदा संस्कृति की झलक दिखला ही देता है।
गोपालपुर में नर्मदा का सौन्दर्य तो विशेष उल्लेखनीय नहीं है यहां नर्मदा शान्त और स्थिर भाव से बहती है। यहां तल उथला होने के कारण और पत्थरों की अधिकता तथा पानी का बहाव कम होने के कारण यहां दिनभर बच्चों का हुजूम मां की गोद में अठखेलियां करते रहता है। यहां स्थित मन्दिर काफी प्राचीन हैं। पुराने समय में गोपालपुर स्थित मन्दिर की बाÊ छटा काफी सुन्दर है। श्वेत आभा के कारण इस मन्दिर को दूर से ही पहचाना जा सकता है। पास ही नर्मदा का तट होने के कारण यह और भी खूबसूरत दिखता है। मुख्य मन्दिर विष्णु और लक्ष्मीजी का है, पर इस मन्दिर का सबसे बड़ा आकर्षण महिषासुर मर्दनी की प्रतिमा है। मुख्य मन्दिर के चारों ओर चार छोटे मन्दिर और हैं। एक ओर महिषासुर मर्दनी की दुलoभ प्रतिमा है, तो दूसरी ओर रुद्र के ग्यारहों रूप के भी दर्शन यहां हो जाते हैं। पास ही कल-कल करती नर्मदा इस मन्दिर की छवि को द्विगुणित कर देती है। पूरे परिसर में 21 शिवलिंग के दर्शन होते हैं। भव्य मन्दिर के अलावा यहां कई भग्नावशेष हैं जो पुरातत्व विभाग की अनदेखी के शिकार तो हुए हैं पर अपने वैभव से हमें चकित करते ही हैं। यहां शिव के अन्य मन्दिर भी हैं। अर्थात यह स्थान कभी शैव और वैष्णव दोनों प्रकार के मतावल्ांबियों के लिए महत्वपूर्ण था। गोपालपुर में नर्मदा तट पर ही कई प्राचीन मन्दिरों के अवशेष भी मिले हैं। इस क्षेत्र का पौराणिक महत्व इससे भी सिद्ध होता है कि यहां नर्मदा का जो टापू है, उसे बलि का यज्ञ स्थल के नाम से जाना जाता है। कहते हैं बलि ने यहीं यज्ञ किया था और विष्णु का प्रसिद्ध वामन अवतार भी यहीं हुआ था। इस टापू पर शिवलिंग पाए जाते हैं।
इससे थोड़ा ही आगे है लम्हेटाघाट। यहां के लम्हेटी रॉक जगत प्रसिद्ध हैं। नर्मदा ने अपने अंक में कई सभ्यता, कई धरोहरें तो समेटी ही हैं। नर्मटा का तट लम्हेटाघाट भी ऐसा ही घाट है। यहां चार कुण्ड भी अपनी उपिस्थति से इसका सौन्दर्य और धामिoक मान्यता बढ़ाते हैं। भेड़ाघाट और तिलवाराघाट के बीच में स्थित लम्हेटाघाट अपने किनारे पर लगे काले पत्थर के कारण काफी रमणीक है। दोनों ओर के मन्दिर इसका सौन्दर्य बढ़ाते हैं। लम्हेटाघाट में कई सारे मन्दिर हैं। ये मन्दिर प्राचीनकाल के हैं। इसमें राधाकृष्ण मन्दिर विशेष उल्लेखनीय है।
लम्हेटा के पास ही है घुघुआ फॉल। यहां भी सौन्दर्य देखने लायक होता है। वैसे तो यहां का फॉल भेड़ाघाट से छोटा है। यहां लोगों का आना-जाना कम ही हो पाता है क्योंकि यहां पास में श्मशान भी है। हाल ही में यहां `सनम की बाहों में #नामक हिन्दी िफल्म की शूटिंग भी हुई है।
एक बार िफर लौटते हैं भेड़ाघाट की ओर। भेड़ाघाट, तिलवाराघाट आदि के आस-पास के क्षेत्र का भू-वैज्ञानिक इतिहास लगभग 180 से 150 करोड़ वर्ष पहले प्रारंभ होता है। कुछ वैज्ञानिक इसे 250 से 180 करोड़ वर्ष पुरानी भी मानते हैं।
भेड़ाघाट के नाम को लेकर अनेक किवदन्तियां प्रचलित हैं। प्राचीनकाल में तो भृगु ऋ षि का आश्रम इसी क्षेत्र में था। इस कारण भी इस स्थान को भेड़ाघाट कहा जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसी स्थल पर नर्मदा का बावनग्ांगा के साथ संगम होता है। लोकभाषा में भेड़ा का अर्थ भिड़ना या मिलना है। इस मत के मानने वालों के अनुसार इसी संगम के कारण इस स्थान का नाम भेड़ाघाट हुआ। एक अन्य मत कहता है कि चूंकि यह स्थान 1700 वर्ष पूर्व शक्ति का केन्द्र था। शैव मत वालों के अलावा शक्ति के उपासक भी यहां पाए जाते थे, इसलिए निश्चय ही यह स्थान कभी भैरवीघाट रहा होगा और बाद में उसी से भेड़ाघाट हो गया। गुप्तोत्तर काल में सम्भवत: इस मन्दिर का विस्तार किया गया और इसमें सप्त मातृकाओं की प्रतिमाएं स्थापित की गईं थीं। ये प्रतिमाएं आज भी भेड़ाघाट स्थित चौसठ योगिनी मन्दिर में हैं। लगभग 10वीं शताब्दी में त्रिपुरी के कल्चुरि राजाओं के शासनकाल में इस मन्दिर का और विस्तार किया गया और इसका परिविर्तत रूप चौसठ योगिनी मन्दिर हुआ, जिसका इतिहास लगभग 1200 वर्ष पुराना है। जो कुछ भी इन सभी मतों के पिछे तर्क और प्रमाण का आधार है इन सबमें इतना तो सच है कि इस स्थान को नर्मदा ने अतुलित सौन्दर्य प्रदान किया है। 748 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह क्षेत्र आज शैव, वैष्णव, जैन तथा अन्य मत-मतान्तर मानने वालों के लिए आस्था का केन्द्र है। पर्यटन और सौन्दर्य की दृष्टि से तो यह महत्वपूर्ण है ही। इस क्षेत्र में नौका विहार के द्वारा भ्रमण करते समय नर्मदा का आलौकिक सौन्दर्य के दर्शन होते हैं बन्दरकूदनी तक पहुंचते-पहुंचते दर्शक संगमरमरी आभा से अभिभूत रहता ही है कि रंग-बिरंगे पत्थर उसे मुग्ध कर देते हैं।
जबलपुर के भेड़ाघाट में जहां से नौका विहार शुरू होता है वहां स्थित है पचमढ़ा का प्रसिद्ध मन्दिर। यहां एक ही प्रांगण में चार मन्दिर हैं। दो सौ साल पुराने इन मन्दिरों का सौन्दर्य अद्वितीय है। ये सभी मन्दिर शिव को समिर्पत हैं। इनका निर्माण चातुर्मास करने के लिए आने वाले नगाओं द्वारा कराया गया है।

8 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

बहुत बढ़िया जानकारीपूर्ण आलेख ...
नमामि नमो नर्मदे .....हर हर महादेव.

vivek ने कहा…

aapne bahut mahan kaam kiya hai shelly ji likhte rahiye bahut bahut achha laga ...aapke shabd jaankari aur bhartiyta se bharpoor hain main theatre artist,musician,aur patrakaar hun.. mere blog www.rangdeergha.blogspot.com par aapka swagat hai ,ise padkar apne vicharon se awagat ZAROOR KARWAYEN

vivek ने कहा…

maa narmada par sangeet srujun kar raha hn record hote hi aapko bhejunga apni email mujhe zaroor batayen shelly ji har narmade vivekpappy@gmail.com

बेनामी ने कहा…

"इस क्षेत्र का पौराणिक महत्व इससे भी सिद्ध होता है कि यहां नर्मदा का जो टापू है, उसे बलि का यज्ञ स्थल के नाम से जाना जाता है। कहते हैं बलि ने यहीं यज्ञ किया था और विष्णु का प्रसिद्ध वामन अवतार भी यहीं हुआ था। इस टापू पर शिवलिंग पाए जाते हैं।"
रोचक और ज्ञानवर्धक आलेख - धन्यवाद्

Udan Tashtari ने कहा…

उम्दा आलेख पर्व विशेष पर.


नर्मदे हर!!

राज भाटिय़ा ने कहा…

नर्मदे हर बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने, धन्यवाद

neelima garg ने कहा…

nice....

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान ने कहा…

नर्मदा मैया के बारे मे बहुत अच्छा लिखा है,जिस प्रकार सुन्दर चित्रो से जानकारी
को सजाया गया है बह बेहतरीन है।