शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

छठ हो गया शुरू




बिहार-यूपी के लोग कर रहे छठ पूजा का आयोजन
बिहार के सुप्रसिद्ध पर्व छठ पूजा की शुरुआत हो चुकी है। यूपी-बिहार के काफी लोग जबलपुर में भी निवास करते हैं। छुट्टियों की कमी, रिजर्वेशन न मिलना या यहीं बस जाने वाले लोग पूरे हर्ष-उल्लास से डाला छठ का आयोजन कर रहे हैं। खरना के कारण आज हर तरफ सूर्यदेव की आराधना के पर्व की धूम है-
आदि देव सूर्य की आराधना ऐसे तो संसार में कई जगह होती है, पर यही त्योहार ऐसा है जहां अस्ताचलगामी और उदयांचल सूर्य की पूजा की जाती है।
मनाया गया नहाय-खाय

चार दिन तक चलने वाले इस त्योहार का पहला दिन नहाय-खाय का होता है। गुरुवार को नहाय-खाय की पूजा पारंपरिक उल्लास के साथ संपन्न हुई। इस दिन नहाने के बाद सूर्य को नमस्कार कर भोजन ग्रहण करने का रिवाज है। प्रसाद में चने की दाल और लौकी अनिवार्य होती है।

आज होगी खरने की पूजा-
मुख्य व्रत आज ही प्रारंभ होगा। दिनभर उपवास के बाद शाम को नये चावल की खीर का भोग लगेगा और उसका वितरण किया जायेगा।

पहला अरग कल-
शनिवार को पहला अरग अर्थात सूर्य अघ्र्य का पहला दिन होगा। नदी या तालाब में गीले शरीर से दूध और पानी से डूबते सूरज को अघ्र्य दिया जायेगा।
दूसरा अरग और पारन-
दूसरे अघ्र्य के दिन ही पूजा के बाद छठ व्रती 36 घंटे के उपवास के बाद पारन करते हैं। सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है।
आयोजन में हो रहीं दिक्कतें-
छठ पूजा में पवित्रता का काफी ध्यान रखना प़ड़ता है। यहां छठ पूजा करने वालों को सभी सामान उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। कच्ची हल्दी, अदरक, सुथनी, अरता जैसी चीजें बिहार में आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं, पर यहां के बाजार में नहीं हैं। यही हाल आम की लक़ड़ी और गन्ने के सूखे रेशे का है। इसी प्रकार यहां जिनके पास अपनी चक्की है वे तो गेहूं पीस चुके हैं, पर बहुत से लोग मिलों में छठ पूजा के लिए अलग आयोजन नहीं हो पाने के कारण फल से पूजा करने को विवश हैं।
घाट हो गए साफ-
पहले अरग के दिन सूर्य को अघ्र्य देने के लिए लोग ग्वारीघाट, छठ ताल, हनुमानताल में मुख्य रूप से जाते हैं। हनुमानताल में छठ पूजा को लेकर साफ-सफाई की गई है। रांझी के छठ ताल में पन्द्रह दिन पहले से ही लोग अपने घाट आरक्षित कर रहे हैं। असुविधा को देखते हुए बहुत से लोगों ने अपनी छत पर ही अघ्र्य की व्यवस्था कर ली है।
ग्रामीण जीवन का पर्व-
छठ पूजा ग्रामीण जीवन का पर्व है। गांव में नये अन्न का महत्व अधिक होता है। छठ पूजा में इस मौसम में आने वाले हर नये अन्न फल-फूल से पूजा की जाती है।

आस्था का चरम-
चार दिनों का यह त्योहार शुद्धता और आस्था का चरम रूप होता है। पूजा का हर सामान नियम और निष्ठा के साथ साफ किया जाता है। यहां तक की चिि़ड़यों और कौओं का जूठा सामान भी नहीं च़ढ़ाते हैं।

पौराणिक संदर्भ-
छठ पूजा का पौराणिक संदर्भ भी है। कहते हैं द्वापर में जब पाण्डव वनवास कर रहे थ्ो और उन्हें विजय का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था, तब द्रौपदी ने धैम्य ऋषि से सहायता मांगी। धैम्य ऋषि ने उन्हें सतयुग की कथा सुनाते हुए छठ व्रत करने की सलाह दी। उसी समय से छठ व्रत मनाया जा रहा है।

3 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

यहाँ भिलाई मे भी धूम मचती है बाद मे सारे तालाबो की सफाई करवानी पड़ती है

राज भाटिय़ा ने कहा…

त्योहार तो अच्छा है मनाना चाहिये लेकिन यह फ़ल सब्जिया तालाब ओर नदी मै बहाने सेव अच्छा है किसी गरीब या जरुरत मंद को दे दे.... फ़िर पानी भी खराब नही होगा ओर भुखो का पेट भी भर जायेगा.
धन्यवाद इस जानकारी के लिये

daanish ने कहा…

achhee aur rochak jaankaari hai
yahaaN Punjab meiN bahut se logo ko nahi maaloom hoga....
aapka shukriyaa